Thursday 28 September 2017

Blog lesson 1 for boys & girls

7 पाठ 7 किशोरों, वयस्कों और वृद्धों के लिए आहार आयोजन पाठ 7 किशोरों, वयस्कों और वृद्धों के लिए आहार आयोजन (Planning Diets for Adolescents, Adults and During Old Age) Audio किशोरावस्था तेजी से विकास और बढ़त की आयु है। यह अवस्था लगभग दस वर्ष तक रहती है। इस समूह में व्यकितयों के विकास की गति बहुत अधिक भिन्न हो सकती है। इसी आयु में, शरीर में, मन में कर्इ प्रकार के परिवर्तन होते हैं। लड़कियां 11 और 14 वर्ष की आयु के बीच और लड़के 13 और 16 वर्ष की आयु के बीच परिपक्वता को प्राप्त होते हैं। शरीर में पानी की मात्राा, शरीर के आयाम, और हडिडयों और वसा की दृषिट से लड़कों और लड़कियों में बहुत अधिक अन्तर होता है। यह स्वाभाविक ही है कि विकास की इस अवधि में पौषिटक आहार की आवश्यकता बहुत अधिक होती है। जिस व्यकित ने भी किशोरों को भोजन करते हुए देखा हो, वह यह बता सकते हैं कि इस आयु में कितनी भूख लगती है। यदि भोजन पर्याप्त मात्राा में उपलब्ध हो तो लड़के तो खाते ही चले जाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि यदि भोजन में पौष्टक तत्त्वों की पर्याप्त मात्राा न हो तो भी किशोर अपनी क्षुधा मिटाने के लिए उसे खा लेंगे लेकिन, उससे उन्हें वे पौषिटक तत्त्व नहीं मिलेंगे जो विकास के लिए आवश्यक हैं। इसी आयु में पौषिटक आहार पाने वाले और उससे वंचित किशोरों के बीच अन्तर स्पष्ट हो जाता है। सामान्यतया घटिया भोजन वह है, जिसमें न तो कैलारी की पर्याप्त मात्राा होती है और न कैलिशयम की। लेकिन किशोर लड़के में कैलिशयम की कमी स्पष्ट रूप से दिखायी नहीं पड़ती, क्योंकि, उसकी कमी के कारण उसका विकास उतना नहीं होता जितना होना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि भोजन में कैलिशयम की मात्राा पर्याप्त न हो तो बच्चा पर्याप्त भोजन भी नहीं कर पाता और इससे उसका विकास अवरूद्ध हो जाता है। कर्इ बार ऐसा भी होता है कि तेजी से बढ़ते हुए किशोर को समुचित कैलोरियां तो मिल जाती हैं लेकिन, कैलिशयम की कमी रहती है। उसके शरीर का ढांचा मजबूत नहीं बनता और उसकी चाल भी अनियमित हो जाती है। ऐसी अवस्था में इस आयु में टांगे टेढ़ी हो सकती हैं या पैर बिल्कुल चपटे हो जाते हैं। गुजरात के अभावग्रस्त क्षेत्राों में यह देखा गया है कि, जब किशोरावस्था के लड़कों को दोपहर में पौषिटक भोजन दिया गया तो उनके वजन में चार से छ: किलोग्राम तक की वृद्धि हुर्इ। लेकिन कम आयु के बच्चों में यह वृद्धि एक से दो किलोग्राम तक की थी। यदि भारतीयों का कद-काठ पशिचमी देशों के नागरिकों की तुलना में कम होता है तो उसका कारण मुख्य रूप से यह है कि किशोरावस्था में भारतीयों के विकास की दर कम हो जाती है। पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकताएं (Nutritional Needs) किशोरों को जिन पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकता है, उनका ब्यौरा नीचे दिया गया है और उसे सारिणी 1 में सारिणीबद्ध किया गया है। किशोरावस्था में लड़कों की तुलना में लड़कियों का विकास पहले होता है इसलिए 13 से 15 वर्ष की आयु की लड़कियों के लिए 16 से 18 वर्ष तक के लड़कों के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किशोर लड़कियों और लड़कों के लिए आवश्यकता ऊर्जा में अन्तर का एक कारण यह है कि लड़कियों में चयापचय की दर (मैटाबालिक रेट) लड़कों की तुलना में कम होती है। 13 से 15 वर्ष के लड़कों को प्रतिदिन 2450 कैलरी की आवश्यकता पड़ी है और 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच 2640 कैलरी प्रतिदिन। लड़कियों को 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच प्रति दिन 2060 कैलरी की आवश्यकता होती है। प्रोटीन की आवश्यकता लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा अधिक होती है, क्योंकि उनका कद-काठ अधिक होता है। विकास की अवधि के बाद लड़कों के शरीर का आकार और परिमाण लड़कियों की तुलना में डेढ़ गुना होता है। लड़कियों के शरीर में वसा अधिक होती है। लड़कों को 13 से 15 वर्ष की आयु में प्रतिदिन 70 ग्राम और 16 से 18 वर्ष के बीच 78 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। उनकी तुलना में लड़कियों को 13 से 15 वर्ष की आयु के बीच प्रति दिन 65 ग्राम और 16 से 18 वर्ष की आयु में 63 ग्राम प्रोटीन की प्रति दिन आवश्यकता होती है। हडिडयों का आकार बढ़ जाता है और उनमें खनिज पदाथो± की आवश्यकता कद-काठ पूरा होने के बाद भी बनी रहती है, इसलिए विकास की अवधि में कैलिशयम की आवश्यकता अधिक होती है और उसके बाद कम हो जाती है। यह बात लड़कों और लड़कियों, दोनों पर लागू होती है। दोनों को 13 से 18 वर्ष के बीच 600 मि.ग्राम कैलिशयम प्रति दिन मिलना चाहिए। लौह तत्व : रक्त के परिमाण में लगातार होने वाली वृद्धि के कारण लौह की आवश्यकता शैशवावस्था की तुलना में किशोरावस्था में अधिक होती है। किशोर लड़कों को 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच प्रतिदिन लगभग 41-50 मिलिग्राम लौह की आवश्यकता होती है। और लड़कियों को 28-30 मि. ग्राम की आवश्यकता होती है। विटामिन ए की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है। 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच लड़कों और लड़कियों, दोनों को प्रति दिन 600 माइकोग्राम रैटीनोल की आवश्यकता होती है। भोजन में बढ़ी हुर्इ कैलरियों के अनुरूप थायमीन, रिबोप्लाविन और निकोटीनिक एसिड की आवश्यकताओं का सुझाव दिया जाता है। लड़कों को इन विटामिनों की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें ऊर्जा की अधिक आवश्यकता पड़ती है। विटामिन सी की आवश्यकता उतनी ही रहती है जितनी कि बचपन में होती है, अर्थात 40 मिलिग्राम प्रति दिन। सभी आयु के किशोरों के लिए भोजन में विटामिन डी की मात्राा 200 अन्तर्राष्ट्रीय इकार्इ निर्धारित की गर्इ है। इस कारण फोलिक एसिड की आवश्यकता सौ माइक्रोग्राम है। यह सिफारिश इस कारण की गर्इ है कि भोजन में जो फौलेट होते हैं उनके Ðास की प्रवृत्ति रहती है। विटामिन B12 केवल मांस में मिलता है और भारत में अधिकतर लोग शाकाहारी है इसलिए, यह सिफारिश की गर्इ है कि भोजन में कम से कम एक मिलिग्राम विटामिन B12 प्रति दिन होना चाहिए। इसका कारण यह है कि खाना पकाने में यह विटामिन किसी हद तक नष्ट हो जाता है और फिर यह भी निशिचत नहीं है कि भोजन में मिलने वाला यह विटामिन किस हद तक शरीर का अंग बन सकता है। ऐसा विश्वास है कि विटामिन B6 की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रोटीन कितनी मात्राा में ली जा रही है। किशोरों को प्रति दिन दो मिलिग्राम विटामिन B6 की आवश्यकता हाती है। पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकताएं (Factors to be considered while Planning Diets) 1. योजनाबद्ध भोजन का संतुलन इस प्रकार करना चाहिए कि कैलिशयम अधिक हो। उसके लिए यदि संभव हो तो दूध की मात्राा बढ.ा दी जाए। जो किशोर कम आय वर्ग के हों उनके भोजन में अधिक कैलिशयम वाले खाध पदार्थ होने चाहिए, जैसे भुना हुआ अनाज, दूसरे अनाज, दालें और पत्तेदार हरी सबिजयां। उनके भोजन में ऊर्जा देने वाले तत्त्वों को भी शामिल करना चाहिए। लड़कियों में अनीमिया की प्रवृति होती है, क्योंकि उनकी लौह की आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं। उन्हें पूरा करने के लिए पत्तों वाली हरी सबिजयां, अनाज और दालें, और यदि सम्भव हो, अण्डे, मांस, कलेजी और मछली उनके भोजन में शामिल की जानी चाहिए। 2. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि व्यकित को कौन-सा व्यंजन पसन्द है। उसके भोजन के साथ-साथ चाय और काफी भी होनी चाहिए। 3. इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि परिवार की सामाजिक-आर्थिक सिथति कैसी है। यह संभव है कि गरीब परिवार का किशोर अपने अमीर समवयस्कों की नकल करके अधिक महंगी वस्तुएं खाना चाहे। इसलिए उन्हें सस्ते लेकिन पौषिटक और आकर्षक पदार्थ खाने के लिए देने चाहिए। 4. भोजन नाना प्रकार के रंग और स्वाद वाला होना चाहिए। किशोर, विशेषकर लड़कियां घर पर खाने के मामले में तनिक नकचढ़ी होती हैं। यदि उन्हें आकर्षक प्रकार का भोजन दिया जाए तो वे घर पर भरपूर भोजन कर पाएंगी। 5. यदि उन्हें स्कूल साथ ले जाने के लिए खाना दिया जाए तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें पौषिटक तत्त्व हों और वह संतुलित भोजन हो, विशेषकर उस दशा में जब दोपहर का पूरा खाना उन्हें दिया जा रहा हो। 6. मौसम के अनुसार ठण्डे पेय या चाय काफी भी देनी चाहिए जिससे कि उनका भोजन अधिक रुचिकर हो। 7. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भोजन संतोषप्रद हो। यह बात लड़कों पर अधिक लागू होती है। यदि खाने से उनका पेट न भरे तो उन्हें सलाद अधिक मात्राा में दी जा सकती है। 8. किशोरों में अल्पाहार लेने की प्रवृत्ति होती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ऐसे अल्पाहार केवल ऊर्जा के स्रोत न हों, अपितु अन्य पौषिटक तत्त्व भी प्रदान करें। 9. भोजन सुखद वातावरण में खाना चाहिए। 16 वर्ष की किशोरी के लिए एक दिन की आहार तालिका दैनिक पौषिटक आवश्यकता ऊर्जा 2060 कैलरी प्रोटीन 63 ग्रा. कैलिशयम 500 मि.ग्रा. लौह 30 मि.ग्रा. वयस्क (Adults) वयस्कता व्यकित के जीवन में ऐसी सिथर अवस्था होती है जब, शरीर का पूर्णरूपेण विकास हो चुका होता है। इस आयु में शरीर के विकास या बहुत अधिक परिश्रम के लिए पौषिटक तत्त्वों की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती। उनकी आवश्यकता इस कारण होती है कि, शरीर की क्रियाएं बनी रहें। वयस्कों में उतनी ही ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिससे उनका सामान्य कार्यकलाप जारी रहे। इस आयु में व्यकित निर्माण कार्य में लगता है, अर्थात अपने निर्वाह के लिए किसी काम में लग जाता है। इस कारण उसको पौषिटक आहार की आवश्यकता होती है, जिससे कि वह अपनी सामथ्र्य के अनुसार काम-काज करता रहे। अच्छे भोजन से वह परिश्रम कर सकता है और बुढ़ापे को, जहां तक हो सके, टाल सकता है। यदि जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उसके भोजन में कुछ पौषिटक तत्त्वों का अभाव रहा हो और इस आयु में भी वह अभाव बना रहे, तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए उसे समुचित पौषिटक आहार मिलना चाहिए और इस बात पर भी बल देना चाहिए कि उसे ऐसी आदतें पड़ें कि उसका स्वास्थ्य बना रहे। वयस्कों की पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकता (Nutritional Needs of Adults) जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, पौषिटक आहार की आवश्यकता मुख्य रूप से इस कारण होती है कि, व्यकित अपने शरीर की क्रियाओं को बनाए रखे और अपना काम-काज करता रहे। दैनिक पौषिटक आवश्यकताएं वयस्कों के लिए अलग-अलग नहीं दी जा सकती। अत: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान पारिषद ;प्ब्डत्द्ध ने प्रस्तावित पौषिटक आवश्यकताएं भारतीय पुरुष व भारतीय स्त्राी के लिए दी है। संदर्भ भारतीय पुरूष ष्एक ऐसा वयस्क पुरूष है जिसकी आयु 20-39 वर्ष है व वजन 60 कि.ग्रा. है।ष् यह वयस्क शारीरिक रूप से स्वस्थ व बीमारी से दूर है। यह प्रतिदिन अपने व्यवसाय में 8 घण्टे मध्यम श्रम का कार्य करता है। जब यह कार्य नहीं करता, तब 8 घण्टे सोता है, चार घण्टे उठने, घूमने के हल्के कार्य करता है व दो घण्टे घूमना, खेलना व अधिक श्रम वाले गृह कार्य करता है। प्ब्डत् के अनुसार ऐसे व्यकित की लम्बार्इ 163 से.मी. है। संदर्भ भारतीय महिला ष्ऐसी महिला है जो 20-39 वर्ष की है व वजन 50 कि.ग्रा. है। यह प्रतिदिन आठ घण्टे अपने घर के कार्य व व्यावसायिक कार्य करती है जो मध्यम श्रेणी के हैंं इसके अतिरिक्त यह आठ घण्टे सोती है, चार घण्टे घूमने, खेलने या अन्य अधिक श्रम के कार्य करती है।ष् प्ब्डत् ने ऐसी महिला की लम्बार्इ 151 से.मी. बतार्इ है। विभिन्न पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकताओं का ब्यौरा सारिणी-2 में दिया गया है। ऊर्जा : वयस्कों में ऊर्जा की आवश्यकता इस कारण होती है कि उनके शरीर की क्रियायें बनी रहें और वे अपना काम-काज करते रहें। लेकिन, उनके लिए भोजन की योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे किस प्रकार के काम में लगे हैं और उस काम के लिए कितनी ऊर्जा की आवश्यकता है। वयस्कों के काम-काज सामान्यतया निम्न प्रकार के होते हैं : हल्का श्रम पुरुष दफ्तरों में काम करने वाले, वकील, डाक्टर, लेखापाल, अध्यापक और वास्तुकलाविदव। स्त्री दफ्तरों में काम करने वाली और वे गृहणियां जिनके पास घर का काम करने के लिए उपकरण या नौकर हों, अध्यापिकाएं और अन्य वृत्तिभोगी महिलाएं। मध्यम श्रम पुरुष हल्के उधोग में काम करने वाले अधिकतर पुरुष, निर्माण कार्य में लगे, जिनमें कठोर परिश्रम करने वाले शामिल नहीं हैं, खेतों में हल्का काम करने वाले और दुकानदार स्त्री हल्के उधोगों में काम करने वाली सित्रायां, गृहणियां जिनके घरों में काम-काज के लिए कोर्इ उपकरण या नौकर न हो, दुकानों में काम करने वाली सित्रायां कठोर परिश्रम पुरुष खेत मजदूर, दूसरे मजदूर, सैनिक, खानों और इस्पात कारखानों के मज़दूर, खिलाड़ी स्त्री खेतों में काम करने वाली सित्रायां, नर्तकियां और खिलाड़ी। शारीरिक श्रम और अन्य कार्यकलाप के अलावा, जिसका व्यकित के पेशे से कोर्इ सम्बन्ध न हो, व्यकितयों की ऊर्जा की आवश्यकताएं अन्य कर्इ बातों पर निर्भर करती है, जैसे कि उसका कद-काठ, आयु, जलवायु और लिंग। कोर्इ व्यकित कितनी ऊर्जा का व्यय करता है, वह इस बात पर निर्भर है कि जब वह काम नहीं कर रहा होता तो उसका चयापचय, अर्थात मैटाबोलिजम, कैसा होता है, उसे चलने-फिरने, खड़े रहने आदि में कितना श्रम करना पड़ता है; इसके साथ ही किसी व्यकित का शारीरिक कार्यकलाप इस बात से भी प्रभावित होता है कि उसके शरीर में वसा कितनी है। पुरुषों की तुलना में सित्रायों की ऊर्जा की आवश्यकता कम होती है क्योंकि, उनके शरीर में वसा की मात्राा अधिक होती है। वयस्कों की ऊर्जा की खपत आयु के साथ बदलती है, क्योंकि उनके शरीर का वजन और उसके गठन में परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन बुढ़ापे में अधिक दिखायी पड़ता है। इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि ऊष्ण प्रदेशों की तुलना में ठण्डे प्रदेशों में ऊर्जा की आवश्यकता अधिक होती है। प्रोटीन : एक साधारण वयस्क को अपने शरीर को बनाए रखने और कार्यकलाप में प्रयुक्त हुए प्रोटीन की कमी पूरी करने के लिए इस तत्त्व की आवश्यकता होती है। सामान्यतया शरीर के वजन के अनुसार प्रति किलोग्राम के पीछे एक ग्राम प्रोटीन प्रति दिन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार औसत भारतीय पुरुष के लिए जिसका वजन 60 किलो हो, 60 ग्राम प्रोटीन प्रति दिन चाहिए होती है और औसत भारतीय स्त्राी के लिए, जिसका वजन 50 किलो हो, 50 ग्राम प्रोटीन प्रति दिन आवश्यक है। खनिज लवण : पुरुषों को प्रति दिन 400 मि.ग्रा. तक कैलिशयम मिलना चाहिए। जहां तक लौह का सम्बन्ध है पुरुषो के लिए 30 मिलिग्राम और सित्रायों के लिए 28 मिलिग्राम की आवश्यकता है, इस रक्तस्राव में लगभग दो मिलिग्राम लौह प्र्रतिदिन (मासिक धर्म के दौरान) स्त्राी के शरीर से निकल जाता है। इस कारण पुरुषों की तुलना में सित्रायों में रक्त की कमी का रोग अधिक होता है। विटामिन : सामान्य पुरुषों और सित्रायों के लिए विटामिन ए, एस्कोर्बिक एसिड, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की आवश्यकता एक जैसी है। दूसरे शब्दों में रैटीनोल के रूप में 600 माइक्रो ग्राम विटामिन ए या बीटा-कैरोटीन के रूप में 2400 माइक्रो ग्राम प्रति दिन मिलना चाहिए। इसके अतिरिक्त 40 मिलिग्राम एस्कोर्बिक एसिड, सौ माइक्रो ग्राम फोलिक एसिड और एक माइक्रो ग्राम विटामिन ठ12 । जहां तक थियामिन, रिबोफ्लाविन और नियासिन का सम्बन्ध है, उनकी आवश्यकता ऊर्जा की आवश्यकता के अनुसार बदलती रहती है। पुरुषों को प्रति दिन 1ण्2 से 1ण्6 मिलिग्राम तक थियामिन प्रति दिन मिलना चाहिए और सित्रायों को 0ण्9 से 1ण्2 मिलिग्राम तक। पुरुषों को 1ण्4 से 1ण्9 मिलिग्राम तक रिबोफ्लाविन प्रति दिन मिलना चाहिए और सित्रायों को 1 मिलिग्राम से 1ण्5 मिलिग्राम तक। जहां तक विटामिन डी का सम्बन्ध है, उसकी 200 अन्तर्राष्ट्रीय इकाइयां प्रत्येक व्यकित को प्रति दिन मिलनी चाहिए, चाहे वह आयु के किसी भी वर्ग में आता हो। भोजन की योजना बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें : (Factors to be considered while Planning Diets) 1. भोजन की योजना इस प्रकार बनानी चाहिए कि उसमें पौषिटक तत्त्वों का संतुलन हो। इस बात पर बल देना आवश्यक है कि यह संतुलन प्रत्येक आहार में रहे। 2. यदि व्यकित दफ्तर जाता है तो पौषिटक, आकर्षक व आसानी से ले जाने वाले टिफिन की योजना बनानी चाहिए। 3. वसा के प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिए व ऐसी वसा का चयन करना चाहिए जिससे उच्च रक्तचाप व हृदय रोगों से बचा जा सके। 4. जिस व्यकित के लिए भोजन की योजना बनायी जा रही है, उसकी परम्पराओं, रीति-रिवाजों और धर्म के प्रति दृषिटकोण का ध्यान रखना चाहिए। 5. इस बात का ध्यान भी रखा जाए कि किस व्यकित को कौन-सा भोजन पसंद है। यदि उसे एक प्रकार का भोजन पसंद न हो तो दूूसरी प्रकार का भोजन दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यकित को दूध अच्छा न लगता हो तो उसे दही, पनीर आदि दिया जा सकता है। 6. भोजन की योजना व्यकित की आय के अनुसार बनायी जानी चाहिए। यदि वह महंगे खाध पदार्थ न खरीद सकता हो, तो उनके स्थान पर सस्ते, परन्तु पौषिटक खाध पदार्थ रखे जा सकते हैं। 7. भोजन, रंग और स्वाद आदि की दृषिट से नाना प्रकार का होना चाहिए। 8. व्यकित को कितना समय उपलब्ध है और उसमें कितनी शकित है उसका भी ध्यान रखना आवश्यक है। यदि भोजन की व्यवस्था किसी ऐसे स्त्राी के लिए करनी हो जो काम-काजी महिला है, तो उस भोजन को पकाने में अधिक समय नहीं लगना चाहिए। 9. व्यंजनों की सूची मौसम के अनुसार बनानी चाहिए। वही सबिजयां और फल चुने जाएं, जो किसी मौसम में मिलते हैं। कारण यह है कि वे अधिक स्वाद वाले, पौषिटक, सस्ते और आसानी से उपलब्ध होते हैं। मौसम के अनुसार भोजन में पेय पदार्थ भी शामिल किए जा सकते हैं। 10. भोजन की योजना इस प्रकार बनायी जाए कि उसे खाकर उसकी क्षुधा संतुषिट हो। भोजन में कच्चे फल व सबिजयाें को समिमलित करना चाहिए। 11. भोजन सुखद वातावरण में किया जाना चाहिए। हल्का काम करने वाली (प्रबंधिका) के लिए दिन-भर आहार तालिका दैनिक पौषिटक आवश्यकता श्रम हल्का ऊर्जा 1875 कैलरी प्रोटीन 50 ग्राम लौह 30 मिलिग्राम कठोर परिश्रम करने वाली मजदूर महिला के लिए दिन भर की आहार तालिका दैनिक पौषिटक आवश्यकता श्रम भारी ऊर्जा 2925 कैलरी प्रोटीन 50 ग्राम लौह 30 मिलिग्राम वृद्धावस्था (Old Age) आयु के बढ़ने के साथ-साथ कर्इ शारीरिक परिवर्तन होते हैं और रोगों से लड़ने की शकित भी क्षीण हो जाती है। जिसके कारण पौषिटक आहार की आवश्यकता अधिक या कम हो सकती है। शरीर में पानी की मात्राा कम हो जाती है और वसा का प्रतिशत बढ़ जाता है। अनुमान है कि 80 वर्ष की आयु में मांस पेशियों की कोशिकाएं आधी रह जाती हैं। शरीर की सक्रिय कोशिकाओं की संख्या में कमी हो जाती है। इस प्रकार के परिवर्तन विशेष रूप से ऊतकों में दिखार्इ पड़ते हैंं मसितष्क, हडिडयों, हृदय, गुर्दे और ढांचे की मांस पेशियों में नए ऊत्तक उत्पन्न करने की शकित क्षीण हो जाती है। सक्रिय कोशिकाओं के स्थान पर वसा और मांस पेशियों को जोड़ने वाले ऊत्तक बन जाता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ विभिन्न अंगों की सक्रिय कोशिकाओं की संख्या में कमी हो जाती है और अंगों की क्रियाशीलता घट जाती है। बहुधा वृद्धों में यह देखा गया है कि उनकी हडिडयों में खनिज तत्त्व समाप्त हो जाते हैं। इस दशा को ओस्टीयोपोरोसिस ;व्ेजवचवतवेपेद्ध की संज्ञा दी जाती है, और तब हडिडयां कुरकुरी हो जाती हैं तो हल्का-सा आघात लगने पर उनके टूट जाने की शंका बढ़ जाती है। वृद्धावस्था में स्वाद और गंध की अनुभूति उतनी तीव्र नहीं होती, जितनी कि युवावस्था में होती है और इस कारण भोजन का आनन्द कम हो जाता है। वृद्धों में बहुधा दंतक्षय पाया गया है उनके मसूढ़े भी ठीक से काम नहीं करते। परिणाम यह होता है वृद्ध नरम भोजन करते हैं और ऐसी वस्तुएं खाते हैं, जिनमें कार्बोहाइड्रेटस की मात्राा अधिक होती है। उस भोजन से उनके शरीर में कैलिशयम, प्रोटीन और विटामिन जैसे पौषिटक तत्त्व नहीं पहुंच पाते। लार कम आने लगता है और पाचन शकित घट जाती है। वृद्धों में बहुधा यह पाया गया है कि वे मांड को नहीं पचा सकते। अधिकतर वृद्धों में आमाशय में अम्ल स्त्रााव कम हो जाता है। आमाशय में विभिन्न प्रकार के पाचक रसों की मात्राा भी कम हो जाती है, जिनके आमाशय में अम्ल की कमी होती है उनका पेट तेजी से खाली हो जाता है। आमाशय और अंतडि़यों में निषिक्रयता आ जाती है और इस बात की अधिक संभावना रहती है कि कुछ प्रकार के भोजन से उनका पेट फूलने लगे। âदय की सक्रियता कम हो जाती है और उसके साथ ही पाचन शकित के क्षय से शरीर की पौषिटक तत्त्वों को अवशोषित करने की शकित का Ðास होने लगता है। पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकताएं (Nutritional Needs) पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकताओं के आंकड़े सारिणी 5 में दिए गए हैं। 25 वर्ष की आयु के बाद चयापचय की सक्रियता प्रति दस वर्ष में दो प्रतिशत घट जाती है। यह Ðास उन व्यकितया में कम होता है जो स्वस्थ रहते हैं और कठोर परिश्रम करते रहते हैं। चयापचय की घटी हुर्इ दर और कार्यकलाप में कमी होने के कारण वृद्धों में ऊर्जा की आवश्यकता कम हो जाती हैं ऊर्जा की आवश्कयता का अनुमान लगाने के लिए भारत की चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यह सिफारिश की है कि बढ़ती हुर्इ आयु के साथ-साथ ऊर्जा की आवश्यकता निम्न प्रकार से कम हो जाती है : आयु आवश्यकता में प्रतिशत कमी 20-30 वर्ष 0 40-49 वर्ष 5 50-59 वर्ष 10 60-69 वर्ष 20 70 वर्ष और उससे अधिक 30 जिन वृद्धों का वजन सामान्य हो, उनके लिए ऊर्जा (कैलोरी) का हिसाब इस प्रकार लगाना चाहिए कि उनका वजन वैसा ही बना रहे। उनके भोजन में इतनी कमी कर दी जानी चाहिए, जिससे कि यदि उनका वजन अधिक हो तो घट कर सामान्य हो जाए। 60 वर्ष के ऊपर वृद्ध पुरूष व स्त्राी की दैनिक ऊर्जा की आवश्यकता तालिका 4 में दी गर्इ है। तालिका-4 शारीरिक वजन के अनुसार वृद्ध स्त्राीपुरूष की दैनिक ऊर्जा की आवश्यकता शारीरिक वजन 60 वर्ष के ऊपर हल्का श्रम करने वाले वृद्ध (कि.ग्रा.) पुरुष महिला 40 — 1544 45 1664 1624 50 1768 1704 55 1872 1784 60 1976 1864 65 2072 1944 70 2176 2024 75 2280 — इस बात को देखते हुए कि वृद्धावस्था में भूख कम लगती है और पाचन शकित कम हो जाती है, वृद्धों के शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है। इस कारण इस बात की व्यवस्था करनी चाहिए कि शरीर में प्रोटीन की कमी न हो। दूध में प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन और खनिज पदार्थ भी होते हैं, इस कारण दूध समुचित मात्राा में देना चाहिए। प्रतिदिन शरीर के वजन के हिसाब से एक किलोग्राम के पीछे 1ण्0 से 1ण्4 ग्राम तक प्रोटीन देनी चाहिए। वृद्धों के भोजन में कम से कम 50 ग्राम घी अथवा तेल रहना चाहिए, क्योंकि वह ऊर्जा का सकेंæति स्रोत है। कम से कम इस मात्राा का पचास प्रति शत शाक भाजी के तेलों के रूप में होना चाहिए, जिनमें आवश्यक वसा-अम्ल रहते हैं। वृद्धों में सामान्यतया कैलिशयम और लौह की कमी हो जाती है। इसका कारण यह है कि वयस्कों की तुलना में वृद्धों में इन तत्त्वों को पचाने की सामथ्र्य कम हो जाती है। कैलिशयम कम से कम आधा ग्राम प्रतिदिन और लौह 28 मिलिग्राम प्रतिदिन होना चाहिए। वृद्धों में रक्त का संचार अधिक नहीं होता और रक्त में लौह तत्वों की थोड़ी-सी कमी से भी उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। उसे रोकने के लिए लौह की मात्राा समुचित होनी चाहिए। वृद्धों में बहुधा कर्इ प्रकार के विटामिनों की थोड़ी कमी हो जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि उनके भोजन में सभी आवश्यक विटामिनों की समुचित मात्राा रहे। यदि उनके भोजन में सभी विटामिनों की समुचित मात्राा न हो तो उन्हें मल्टी विटामिन गोली प्रतिदिन देनी चाहिए जिससे कि विभिन्न विटामिन उनके शरीर में पहुंच जाएं। थायमीन, रिबोफ्लेविन और नियासिन की आवश्यकता ऊर्जा की आवश्यकता के अनुसार तय की जाती है। एस्कोर्बिक एसिड (विटामिन सी) प्रतिदिन 40 मिलिग्राम, फोलिक एसिड, विटामिन ठ12 और विटामिन ठ6 लगभग सौ माइक्रोग्राम, एक माइक्रोग्राम और दो मिलिग्राम देना चाहिए। यह आवश्यक है कि प्रति दिन विटामिन डी के 400 अन्तर्राष्ट्रीय इकार्इ दिए जाएं, जिससे शरीर में कैलिशयम अवशोषित होने लगेगा और हडिडयों की रक्षा की जा सकेगी। आमतौर पर इस बात को नहीं समझा जाता कि वृद्धों को जल तथा अन्य तरल पदार्थ समुचित मात्राा में देने चाहिए, जिससे कि वे प्रति दिन डेढ़ लीटर पेशाब करें। पानी के साथ-साथ छाछ, फलों का रस, सूप आदि देना चाहिए। इस बात की व्यवस्था करनी चाहिए कि वृद्धों को हरी शाक-भाजी और फल समुचित मात्राा में दिए जाएं जिससे कि उनके भोजन में रेशे की मात्राा समुचित रहे और उन्हें कब्ज न होने पाए। वृद्धावस्था में अंतडि़यां ऐसी हो जाती हैं कि पकी सबिजयों का रेशा और अनाज का चोकर भली-भांति पच नहीं पाता। भोजन की योजना बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें : (Factors to be considered while Planning Diets) वृद्धों के लिए भोजन की योजना बनाते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए। (1) भोजन ऐसा हो कि यह पौषिटक तत्त्वों की दृषिट से संतुलित रहे। इस बात पर बल देना चाहिए कि प्रोटीन, कैलिशयम, विटामिन और रेशे की समुचित मात्राा रहे, क्योंकि अधिकतर वृद्धों में इन तत्त्वों की कमी हो जाती है। (2) वृद्धों के लिए भोजन को चबाने में कठिनार्इ हो सकती है इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भोजन नरम हो और उसमें सूप, दाल या दलिए जैसे तरल पदार्थ हों, जिन्हें निगलने में कठिनार्इ न हो। वृद्धों को सलाद कस करके दिया जा सकता है। भोजन पूरी तरह पका हुआ होना चाहिए। रोटी मोटी बनायी जा सकती है जिससे कि उसे चबाने में कष्ट न हो। अगर आवश्यकता हो तो रोटी को दूध या दाल में भिगो कर खाया जा सकता है। (3) कैलिशयम की आवश्यकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हडिडयों में धीरे-धीरे खनिज लवण निकलने शुरू हो जाते हैं। (4) यदि एक समय में व्यकित पूरा आहार नहीं ले पाता है तब छोटे आहार कम समय अन्तराल में देने चाहिए। (5) इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिसके लिए भोजन की योजना बनायी जा रही है उसे कौन-सा व्यंजन पसन्द है। (6) कार्बोहाइड्रेटस की जो मात्राा भोजन में हो वह नरम होनी चाहिए, जिससे कि खाने वाले को कब्ज़ न हो। (7) मीठे पदार्थ कम कर देने चाहिए, क्योंकि उनसे भूख मारी जाती है और केवल कैलोरी ही मिलती है। (8) भोजन में कैलोरी की मात्राा इतनी होनी चाहिए कि शरीर का वजन न बढ़ने पाए। (9) यदि भूख कम लगती हो तो ऐसा भोजन होना चाहिए जिसकी मात्राा कम हो परन्तु जिसमें कैलोरियों की मात्राा पूरी रहे साथ ही भोजन को सुस्वाद बनाना चाहिए। वृद्धों को नाश्ते और दोपहर के भोजन के बीच और तीसरे प्रहर भी कुछ खाने के लिए दिया जा सकता है। (10) इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी आर्थिक सिथति कैसी है। योजना आर्थिक सिथति के अनुरूप बनानी चाहिए। तालिका 6 वृद्धों के लिए कुछ प्रस्तावित व्यंजन सूची नाश्ता दोपहर का भोजन रात का भोजन आटे या सूजी का हलवा चपाती चपाती या चावल दूध दाल और पालक सब्जी या कढ़ी दही पपीता उपमा जिसमें मूंगफली हो चावल खिचड़ी केला अंकुरित चना दूध या दही गाजर की सब्जी टमाटर का सलाद चावल व मूंग दाल चपाती चावल का दलिया, दूध के साथ चने की दाल सांभर गाजर (कसी हुइ) गाजर पाव रोटी या टोस्ट सब्जी वाला पुलाव चावल अंडे की भुर्जी धनिए की चटनी अंडे की सब्जी दूध दही दही यदि भोजन के समय भूख कम हो तो दो समय के भोजन के बीच पौषिटक आहार दिया जा सकता है। दो व्यंजनों के बीच खाने के लिए दिए जाने वाले व्यंजनों का सुझाव: दूध और बिस्कुट/रस्क/टोस्ट लस्सी और फलों की चाट दही और केला कोर्नफलेक और दूध अंडे के सैंडविच टमाटर और पनीर के सैंडविच

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